ज़ाहिर न हो कभी कि सभी का रक़ीब हूँ
फ़हमी ये ठीक है कि अधूरा रक़ीब हूँ
जो शोर-ओ-ग़ुल मचाए मिरी सामेईन ने
मेरे रक़ीब कह रहे उम्दा रक़ीब हूँ
बाँका कहा निभा के रक़ाबत रक़ीब ने
महबूब जानता है छबीला रक़ीब हूँ
चर्चा वो कर रहे हैं कि चर्चा तो कीजिए
महफ़िल में आ गया इक अबूझा रक़ीब हूँ
मयख़ाना ख़ाली कर के भी मैं बा-अदब चला
साक़ी समझ रहा था कि बिगड़ा रक़ीब हूँ
दरिया इक आग का है सर-ए-इश्क़ ये मिरा
गो आज़मा मुझे मैं पुराना रक़ीब हूँ
फ़ितरत वतन-परस्त है ख़ौफ़-ए-सलीब क्या
रहमत न करना मुझ पे तू पाशा रक़ीब हूँ
मेरे हबीब हाल-ए-तबीअत का सोग छोड़
बज़्म-ए-रक़ीब का मैं चहीता रक़ीब हूँ
क्या कैफ़ियत बताऊँ है कैसा जुनून-ए-इश्क़
दिल है खुली क़िताब कुशादा रक़ीब हूँ
Read Full