अब किधर जाएँगे अपना हाल लेकर - nakul kumar

अब किधर जाएँगे अपना हाल लेकर
हाथ से निकला हुआ ये साल लेकर

सब समंदर सामने प्यासे खड़े हैं
मैं खड़ा हूँ अंजुरी भर ताल लेकर

यूँ पड़े हैं रेत में मछली पड़ी हो
कोई तो आ जाए अपना जाल लेकर

होंठ मेरे ताप से जलने लगे हैं
तुम खड़ी हो जो दमकते गाल लेकर

तुम अँधेरे लाए हो झोले में भरकर
हम खड़े हैं रौशनी का थाल लेकर

हमको देखो हम ग़मों का इक शजर हैं
साथ में चलते हैं हँसती डाल लेकर

हम तुम्हारी ज़िंदगी लाएँगे रब से
तुम चले आओ हमारा काल लेकर

तुमको गर दरकार है ले जाओ फिर सब
हम चले जाएँ तिरा रूमाल लेकर

तू चला किस ओर अपनी खाल लेकर
हम खड़े हैं ये तेरा कंकाल लेकर

क्या करोगे जुगनुओं की बस्तियों में
चाँद सा रौशन ये अपना भाल लेकर

- nakul kumar
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