अब किधर जाएँगे अपना हाल लेकर
हाथ से निकला हुआ ये साल लेकर
सब समंदर सामने प्यासे खड़े हैं
मैं खड़ा हूँ अंजुरी भर ताल लेकर
यूँ पड़े हैं रेत में मछली पड़ी हो
कोई तो आ जाए अपना जाल लेकर
होंठ मेरे ताप से जलने लगे हैं
तुम खड़ी हो जो दमकते गाल लेकर
तुम अँधेरे लाए हो झोले में भरकर
हम खड़े हैं रौशनी का थाल लेकर
हमको देखो हम ग़मों का इक शजर हैं
साथ में चलते हैं हँसती डाल लेकर
हम तुम्हारी ज़िंदगी लाएँगे रब से
तुम चले आओ हमारा काल लेकर
तुमको गर दरकार है ले जाओ फिर सब
हम चले जाएँ तिरा रूमाल लेकर
तू चला किस ओर अपनी खाल लेकर
हम खड़े हैं ये तेरा कंकाल लेकर
क्या करोगे जुगनुओं की बस्तियों में
चाँद सा रौशन ये अपना भाल लेकर
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