तन्हा न अपने आपको अब पाइए जनाब
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइए जनाब
नग़्मों की बारिशों में कहीं भीगने चले
मौसम की आरज़ू को न ठुकराइए जनाब
रिश्तों को भूल जाना तो आसान है मगर
पहले ख़ुद अपने आपको समझाइए जनाब
ऐसा न हो थमे हुए आँसू छलक पड़े
रुख़सत के वक़्त मुझको न समझाइए जनाब
मैं 'साज़' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी
मेरे ही शे'र मुझको सुना जाइए जनाब
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