क्या क्या करना पड़ता होगा उसकी याद में आने को
कितनी मुहब्बत करनी पड़ेगी उससे धोखा खाने को
चाहूं गर तो अब भी कर लूँ वैसे उसके दिल में घर
छोड़ आया हूँ अब मैं लेकिन उसके राज-घराने को
जैसे मुझको लगता है उसको भी लगता होगा क्या
इतना जो मैं डर जाता हूँ उसकी झलक ही पाने को
बैठा हूँ कमरे में कबसे अंदाज़ा ये लगता नहीं
कितना हुआ नुक़सान है मुझको कितना और है आने को
कैसे कैसे लोग हैं देखो मुझसे जलते फिरते हैं
ये भी तब जब मेरे पास नहीं है कुछ मुस्काने को
अब वो ख़ुद से आ भी जाए क्या ही कर लेगा 'साकेत'
छोड़ो उसके क़िस्से यारो रात हुई अब जाने को
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