उसे मालूम है अपनी हक़ीक़त भी फ़साना भी
हमारे दिल में था अक्सर उसी का आना जाना भी
बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी
फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी
अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब
करम-फ़रमा हैं मुझ पर कुछ मिज़ाज-ए-आशिक़ाना भी
जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू
वहाँ पर छोड़ देती हैं ये ख़ुशियाँ आना जाना भी
बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का
कहीं पेड़ों पे अब मिलता नहीं वो आशियाना भी
हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से
हमारे साथ महकेगा अदब का कारख़ाना भी
न जाने किन ख़्यालों में नहाकर मुस्कुराती है
'रज़ा' आता नहीं है राज़-ए-दिल उसको छुपाना भी
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