जीवन को मेरे बहुत नीरस कर गई है वो लड़की
दिल को बहुत तन्हा मेरे बस कर गई है वो लड़की
कुछ एक दो ज़ख़्म थे बस मेरी बची ज़िंदगी में
अब मरता यूँ छोड़ उनको दस कर गई है वो लड़की
ख़ुद्दारी की अच्छी आदत है उसमें बचपन से शायद
तोहफ़े सभी के सभी वापस कर गई है वो लड़की
मैं तो वो था जो न रोता था मौत पे भी किसी की
मुझको रुलाने का भी साहस कर गई है वो लड़की
भूलोगे कैसे भला यादें उसकी अब शांतनु तुम
चाहत की डोरी बहुत ही कस कर गई है वो लड़की
As you were reading Shayari by Shantanu Sharma
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