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हंसते हंसते खामखाह ही पुराने ज़ख्म उभर आए - Shashank Tripathi

हंसते हंसते खामखाह ही पुराने ज़ख्म उभर आए
खुशियां इतनी हो गई कि आंखों में अश्क भर आए

ना जाने ये कौन शख्स है जो आइने से घूरता है हमें
हमारे गमों पर ना जाने क्यों रक्स करता नजर आए

मंज़िल को पलकों पर बिठाए इक अरसे से चले जा रहे
मंज़िल को जाने वाली, हर राह से हम गुज़र आए

तमन्नाएं, उम्मीदें, ख्वाहिशें सब धुंधली पड़ने लगी हैं
मिल जाए जो मंज़िल, लौटकर हम सुकूं से घर आए

ये जो बुरा वक़्त है, कमबख्त गुजरता ही नहीं "निहार"
इंतज़ार में अच्छे वक़्त के, हम और भी निखर आए

- Shashank Tripathi

Khushi Shayari

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