दिल में सैलाब है इक जिसको दबा बैठे हैं - Haider Khan

दिल में सैलाब है इक जिसको दबा बैठे हैं
ज़ख़्म छुपता तो नहीं फिर भी छुपा बैठे हैं

जब कभी हमने उठाई है क़लम अपनी तो
नक़्श हर बार तुम्हारा ही बना बैठे हैं

जब तुम्हें ग़ैर की आँखों में झलकता देखा
अपनी आँखों की चमक तब से गँवा बैठे हैं

वो जिसे दिल में छुपा कर के कभी रक्खा था
हम उसे आज नज़र तक से गिरा बैठे हैं

है ये उम्मीद के आओगे कभी मिलने तुम
हम भी मासूम हैं उम्मीद लगा बैठे हैं

याद करते थे तुम्हें शाम-ओ-सहर पहले हम
अब तो हम चहरा-ओ-नक़्शा भी भुला बैठे हैं

था ज़माना के कभी साथ सफ़र करते थे
ये जो दो लोग यहाँ हो के जुदा बैठे हैं

हमने हर बार ही उनको है मनाया " हैदर"
हक़ सभी अपने तो हम कर के अदा बैठे हैं

- Haider Khan
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