दिल के ज़ख़्मों को फिर इक बार बढ़ाना है मुझे
फिर से उस कूचे से होते हुए जाना है मुझे
अपने लहजे को कभी गूंजते सन्नाटों में सुन
ये ज़हर तुझको तिरे हाथों पिलाना है मुझे
इसलिए झाँकता रहता हूँ तिरी आँखों में
तेरी आँखों का हर इक अश़्क चुराना है मुझे
जिस से नज़रें न मिलीं और न कभी बात हुई
ऐसे इक शख़्स से इस दिल को मिलाना है मुझे
सोचता हूँ कि तिरे नाम पे अब ख़त न लिखूँ
फ़ाएदा क्या जो इसे लिख के जलाना है मुझे
वो ये कहता है ख़ुदा है तो दिखाई भी तो दे
उसके दिल पर जो ये पर्दा है उठाना है मुझे
मैं नहीं चाहता मुझ से हो कभी इश्क़ उसे
उसको बर्बाद हो जाने से बचाना है मुझे
वाइ'ज़ों तुमको मुबारक हों ये जन्नत के महल
मां का आँचल ही मेरे सर पे ख़ज़ाना है मुझे
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