हमने हर ज़ख़्म को सीने से लगा रक्खा है
ज़ख़्म के साथ ही जीने में मज़ा रक्खा है
दिल में हलचल है मगर लब पे है ख़ामोशी सी
कितने दरिया को समुंदर ने छुपा रक्खा है
हार जाएगा जो दुनिया से तो लौटेगा वो
इसलिए हमने ये दर अपना खुला रक्खा है
जबसे दीदार हुआ ख़्वाब में तेरा मुझको
तबसे आँखों में वही ख़्वाब सजा रक्खा है
इश्क़ में हार भी जाओ तो नहीं है ये मात
इसमें नुकसान में पोशीदा नफ़ा रक्खा है
बस तेरी आँख से आँसू के छलक जाने पर
चंद लोगों ने जहाँ सर पे उठा रक्खा है
जो मयस्सर न हुआ मुझको ख़यालों तक में
बेवजह दिल ने उसे अपना बना रक्खा है
कोई अख़्लाक़ में तुझसा जो मिले तो समझूँ
नाम तुझसा है तो क्या? नाम में क्या रक्खा है
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