गुनाहों की सज़ा दुनिया में मिल जाए तो क्या होगा
कोई जो इस जहाँ में दिल को तरसाए तो क्या होगा
मोहब्बत के सफ़र में तो कोई मंज़िल नहीं होती
सफ़र की इब्तिदा में तुम जो घबराए तो क्या होगा
जो दिल को चाक करते हैं अदा जिनकी क़यामत है
ख़ुदा जाने ये दिल उन पर ही आजाए तो क्या होगा
जिसे काँटों की सोहबत से बचाते फ़िर रहे हो तुम
तुम्हारी ही वजह से गुल वो मुरझाए तो क्या होगा
ज़माने की नज़र से बच के तुझ से मिल रहा हूँ पर
तेरी ख़ुशबू से मेरा घर महक जाए तो क्या होगा
तुम्हें भी खूब है ये शौक़ हमसे रूठ जाने का
अगर हम ना मनाने पर उतर आए तो क्या होगा
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