ग़म ये सारा तेरे दिल के तहखाने से निकलेगा
तेरी आँख का आँसू जब मेरे शाने से निकलेगा
मेरी सारी उलझन तो है, तेरे उलझे बालों से
इस मस'अले का हल तो ज़ुल्फें सुलझाने से निकलेगा
दुनियादारी के ख़ाने से निकलेंगे जब नाम कई
नाम तुम्हारा सिर्फ़ मोहब्बत के ख़ाने से निकलेगा
निकल न पाएगा तुझसे गो कुछ भी कर ले चारागर
उसकी याद का काँटा है उसके आने से निकलेगा
इश्क़ का पहिया घूमेगा लेकिन इस बार कहानी में
राधा गोकुल से और मोहन बरसाने से निकलेगा
एक नया आशिक़ है उसका, जान छिड़कता है उसपर
मुझको डर है वो भी इक दिन मयखाने से निकलेगा
मुझको लगता है वो दिन भी 'साज़' क़यामत का होगा
जिस दिन भी उसका झुमका मेरे सिरहाने से निकलेगा
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