ज़ख़्मों पे अपने ज़ख़्म बनाने का शौक़ था
यूॅं बेसबब ही दिल को दुखाने का शौक़ था
पढ़ते थे ख़ुद की मौत पे हर शाम मर्सिया
क़ब्रों पे आशिक़ों के भी गाने का शौक़ था
करना पड़ा क़याम भी बाहों में ग़ैर के
हम को दयारे-दिल के ठिकाने का शौक़ था
तौफ़ीक़ है ये इश्क़ ज़माने को क्या ख़बर
कब इश्क़ को भी ऐसे ज़माने का शौक़ था
है ज़र्फ़ जुगनुओं का मिरे वास्ते जले
हम थे जिसे चराग़ बुझाने का शौक़ था
कुछ बाद उनके हाथ मिरे ऐब लग गये
कुछ यार को नशे में डुबाने का शौक़ था
ग़ज़लों में तेरे नाम पे लिखते हैं बेवफ़ा
वा'दा-शिकन को वा'दा निभाने का शौक़ था
उनकी ख़ुमार शब हुई है और दिल-नशीं
वो साथ जिनको हिज्र मनाने का शौक़ था
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