"इस तिरंगे का हर इक धागा"
इस तिरंगे का हर इक धागा ये कह कर रो पड़ा है
वो पड़ा है जो धरा पर वो मेरे कद से बड़ा है
इस तिरंगे का हर इक धागा
वो पिता जो पुत्र से सुनता था सब वीरों के किस्से
आज उसकी वीरता पर गर्व से था गदगदाया
और वो माँ जो खड़ी थी अश्रु नैनों में सँजोकर
उसने अपने दूध से माटी का सारा ऋण चुकाया
वो बहन जो सोचती थी आएगा राखी बंधाने
भाई ख़ुद न आ सका, आया तो केवल शव ही आया
पत्नी जिसकी माँग में जिसने जड़े थे ख़ुद सितारे
आज वो ख़ुद ही सितारा बन सितारों में समाया
और वो भाई बड़ा जिसका लखन सा था अनुज तू
आज ख़ुद ही कह रहा है वीर तू सबसे बड़ा है
इस तिरंगे का हर इक धागा ये कह कर रो पड़ा है
वो पड़ा है जो धरा पर वो मेरे कद से बड़ा है।।
इस तिरंगे का हर इक धागा
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