"एहसास अकेलेपन का"
आज फिर अकेले कहीं सोया था मैं
तनहाई में अपनी फूट-फूट कर रोया था मैं
बस चैन में नींद और नींद में चैन न मिला मुझे
इस क़दर उस रात अपने आप को मनाना पड़ा मुझे
तेरी यादों ने फिर से रात भर जगा-ये रखा था मुझे
याद आऊँ अगर मैं तो इस तरह भूल जाना मुझे
शायद इसी तरह से सुकून मिल पाएगा मुझे
तू इस तरह तो मुझे मिला था नहीं
की ढूँढ पाऊँ मैं तुझे हर कहीं
हो रहा था आज वादियों से ज़िक्र तेरा भी कहीं
यार ख़ुद तेरा अकेला बैठा था यहीं
फूल खिले थे फिर से कहीं बाग़ में
जल रहा था अकेला वह कहीं हसरतों की आग में
कोई उम्मीद कोई राह नज़र नहीं आयी
ऐ मेरी मोहब्बत तू आख़िर सामने क्यों नहीं आयी
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