Ameer Chand Bahar

Ameer Chand Bahar

@ameer-chand-bahar

Ameer Chand Bahar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ameer Chand Bahar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

4

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
इश्क़ में ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ दरकार है
बे-ज़बानी की ज़बाँ दरकार है

दैर-ओ-का'बा से नहीं कोई ग़रज़
मुझ को तेरा आस्ताँ दरकार है

वहशत-ए-दिल का हो कोई तो इलाज
सोहबत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ दरकार है

मेरे दिल की सम्त वो नज़रें उठीं
बिजलियों को आशियाँ दरकार है

शौक़ से आ कर मिरे दिल में रहें
आप को ख़ाली मकाँ दरकार है

इन घनी ज़ुल्फ़ों का साया कीजिए
धूप में इक साएबाँ दरकार है

मैं इसी दुनिया को कहता हूँ बहिश्त
शैख़ को बाग़-ए-जिनाँ दरकार है

वारदात-ए-क़ल्ब है मुझ को अज़ीज़
आप को हुस्न-ए-बयाँ दरकार है

राज़-ए-दिल किस पर करूँ मैं आश्कार
कोई दिल का राज़दाँ दरकार है

ना-शनासान-ए-अदब मेरे हरीफ़
सोहबत-ए-दानिश-वराँ दरकार है

ज़िंदगी से हो गया है दिल उचाट
फिर हदीस-ए-दिलबराँ दरकार है

हासिदों में घिर गया हूँ ऐ 'बहार'
फ़िक्र-ओ-फ़न का क़द्र-दाँ दरकार है
Read Full
Ameer Chand Bahar
दौलत-ए-दुनिया कहाँ दरकार है
मुझ को तेरा आस्ताँ दरकार है

आप को भी इक सहारा चाहिए
मुझ को भी इक हम-ज़बाँ दरकार है

ज़िंदगी की इस कड़कती धूप में
साया-ए-सर्द-ए-रवाँ दरकार है

बर्क़-ओ-बाराँ का उड़ाए जो मज़ाक़
आज वो अज़्म-ए-जवाँ दरकार है

ज़िंदगी से है इबारत इक जिहाद
शेर की ताब-ओ-तवाँ दरकार है

तीर-ओ-नश्तर शेर यूँ बनता नहीं
इक दिल-ए-आतिशीं-फ़शाँ दरकार है

चाहिए इक़बाल की फ़िक्र-ए-रसा
दाग़ की तब-ए-रवाँ दरकार है

हो तहारत 'हाली'-ओ-'महरूम' की
'मीर'-ओ-'मोमिन' की ज़बाँ दरकार है

शेर से महज़ूज़ होने के लिए
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-निहाँ दरकार है

अहल-ए-महफ़िल को तरन्नुम चाहिए
शाइरी उन को कहाँ दरकार है

मुर्शिद-ए-कामिल की मुझ को है तलाश
मज्लिस-ए-रुहानियाँ दरकार है

रूह को जिस से मिले बालीदगी
मुझ को वो पीर-ए-मुग़ाँ दरकार है

मन का सारा मैल जिस से दूर हो
वो शराब-ए-अर्ग़वाँ दरकार है

हम पे जो गुज़री वो कहने के लिए
हुस्न-ओ-उस्लूब-ए-बयाँ दरकार है

ज़िंदगी का राज़ पाने के लिए
हम को उम्र-ए-जावेदाँ दरकार है

मुझ को अपने दोस्तों से ऐ 'बहार'
इक ख़ुलूस-ए-बे-कराँ दरकार है
Read Full
Ameer Chand Bahar
बुझ जाए दिल बशर का तो उस को शिफ़ा से क्या
किस दर्जा होगी कारगर उस को दवा से क्या

झुलसा के रख दिया जिसे बाद-ए-सुमूम ने
ग़ुंचों से क्या ग़रज़ उसे बाद-ए-सबा से क्या

दो वक़्त जिस ग़रीब को रोटी न हो नसीब
मज़हब का क्या करे उसे ज़िक्र-ए-ख़ुदा से क्या

रहने को झोंपड़ा भी न जिस शख़्स को मिले
उस को सज़ा की फ़िक्र क्या उस को जज़ा से क्या

जिस के बदन पे गोश्त दिखाई न दे कहीं
उस आदमी को रूह की नशो-ओ-नुमा से क्या

तंग आ चुका हो कशमकश-ए-ज़िंदगी से जो
क्या मह-वशों से काम उसे दिलरुबा से क्या

फ़िक्र-ए-मआ'श ही से न फ़ुर्सत मिले जिसे
शेर-ओ-अदब से क्या उसे मेहर-ओ-वफ़ा से क्या

सुनता हो जो ज़मीर की आवाज़ दोस्तो
उस को किसी ख़िज़र से किसी रहनुमा से क्या

रहता हो अपनी ज़ात में जो मस्त हर घड़ी
उस को सरा-ए-दहर की आब-ओ-हवा से क्या

कहना हो जो भी आप उसे बरमला कहें
लफ़्ज़ों के हेर-फेर से तर्ज़-ए-अदा से क्या
Read Full
Ameer Chand Bahar
लाज़िम है लाएँ ढूँड कर ख़ुद को कहीं से हम
क्या बे-नियाज़ हो गए दुनिया-ओ-दीं से हम

महसूस हो रहा है हमें तुम से मिल के आज
जैसे पहुँच गए हों फ़लक पे ज़मीं से हम

दुनिया-ए-पुर-फरेब के अंदाज़ देख कर
दिल यूँ बुझा कि हो गए ख़ल्वत-नशीं से हम

उस जान-ए-आरज़ू से मुलाक़ात यूँ हुई
मुद्दत के बाद जैसे मिले हों हमीं से हम

इस हुस्न-ए-एतिक़ाद की मेराज देखना
इक बुत को कह रहे हैं ख़ुदा किस यक़ीं से हम

फिर आ गए हैं कूचा-ए-जानाँ में लौट कर
निकले थे इक तवील सफ़र पर यहीं से हम

सीखे कहाँ से तू ने ये अंदाज़-ए-दिलबरी
जी चाहता है पूछ लें उस नाज़नीं से हम

हम को क़दम क़दम पे जो देते रहे फ़रेब
रखे हुए हैं आस अभी तक उन्हीं से हम

फ़िक्र-ओ-नज़र को इश्क़ ने बख़्शी हैं वुसअ'तें
तकते हैं आसमान की जानिब ज़मीं से हम

अहल-ए-नज़र के सामने रखेंगे ये ग़ज़ल
हासिल करेंगे दाद किसी नुक्ता-चीं से हम

जिस अर्ज़-ए-पाक ने दिया 'महरूम' को जनम
आए हैं ऐ 'बहार' उसी सरज़मीं से हम
Read Full
Ameer Chand Bahar