Dr. Azam

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@dr-azam

Dr. Azam shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Dr. Azam's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ख़ुदा भी जानता है ख़ूब जो मक्कार बैठे हैं
हरम में सर-निगूँ कुछ क़ाबिल-ए-फ़िन्नार बैठे हैं

घरों में साथ बैठे हैं सर-ए-बाज़ार बैठे हैं
नक़ाब अपनों का ओढ़े आज-कल अग़्यार बैठे हैं

मोहब्बत की नज़र में जीत ली है हम ने वो बाज़ी
ज़माने की नज़र में हम कि जिस को हार बैठे हैं

ख़ता हो जाए हम से जो कोई तो दरगुज़र करना
तुम्हारी बज़्म में हम आज पहली बार बैठे हैं

ज़मीं से या फ़लक से या कि अपनों से कि ग़ैरों से
बताएँ किस तरह किस किस से हम बेज़ार बैठे हैं

यही जम्हूरियत का नक़्स है जो तख्त-ए-शाही पर
कभी मक्कार बैठे हैं कभी ग़द्दार बैठे हैं

अदब की महफ़िलों में अब कहाँ जम्म-ए-ग़फ़ीर 'आज़म'
यहाँ दो-चार बैठे हैं वहाँ दो-चार बैठे हैं
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अश्क पर ज़ोर कुछ चला ही नहीं
मैं ने रोका बहुत रुका ही नहीं

आतिश ज़ेर-ए-पा सबब वर्ना
ख़ाक सहरा की छानता ही नहीं

या तो सब का ख़ुदा ही सच्चा है
या तो सच्चा कोई ख़ुदा ही नहीं

ज़ेहन कहता है सर झुका ले तू
दिल मगर है कि मानता ही नहीं

बाल-ओ-पर हों क़वी तो क्या हासिल
जब उड़ानों का हौसला ही नहीं

हाए मैं ने पस-ए-ग़लत-फ़हमी
वो सुना मैं ने जो कहा ही नहीं

मौत का डर इसे दिखाएँ क्या
ज़िंदा रहना जो चाहता ही नहीं

सिर्फ़ एहसास-ए-कमतरी है तुझे
और तू है कि मानता ही नहीं

मैं ही मैं बज़्म में रहा मौजूद
और मैं बज़्म में गया ही नहीं

मेरी ग़ीबत में वो भी हैं शामिल
आज तक जिन से मैं मिला ही नहीं

जो कि पहचान हो मिरी 'आज़म'
शे'र ऐसा कोई हुआ ही नहीं
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बुलंद फ़िक्र की हर शे'र से अयाँ हो रमक़
मिरे क़लम से अदा हो कभी ग़ज़ल का हक़

उदास उदास हैं इंसाँ हर एक चेहरा फ़क़
ये शहर शहर है या दश्त है ये लक़-ओ-दक़

मैं दिल की बात कहूँ यूँ कि दिल तलक पहुँचे
न हों किनाए ही मुबहम न इस्तिआ'रे अदक़

चलो समेट के ऑफ़िस को अपने घर की तरफ़
उफ़ुक़ के पार वो देखो उतर रही है शफ़क़

ज़रा सा इल्म-ओ-हुनर पा गए तो कुछ कम-ज़र्फ़
समझ रहे हैं सभी को ही अहक़र-ओ-अहमक़

फिर एहतिजाज के रस्ते पे क्यूँ चलेंगे हम
हमें जो मिलता रहे आप से हमारा हक़

तअ'ल्लुक़ात में क़ाएम रखें भरोसे को
कि शक हमेशा ही करता रहा है रिश्ते शक़

किसी किताब में मिलता नहीं है ज़िक्र 'आज़म'
हमें सिखाए हैं इस ज़िंदगी ने ऐसे सबक़
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शौक़ बाक़ी नहीं बाक़ी नहीं अब जोश-ओ-ख़रोश
दिन वो पुर-कैफ़ थे जब हम थे सरासर मदहोश

मस्लहत जोश-ए-बग़ावत को दबा देती है
दिल धड़कता है मगर दिल की सदाएँ ख़ामोश

अब कोई सूरत-ए-गुफ़्तार नज़र आती नहीं
वो भी ख़ामोश मिरा रद्द-ए-अमल भी ख़ामोश

तेरी रफ़्तार लगातार हो कछुए की तरह
वर्ना रह जाएगा तू राह में मिस्ल-ए-ख़रगोश

ज़ीस्त की राह पे तन्हा न कभी चल पाया
ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ भी रहे दोश-ब-दोश

सामना दहर का तन्हा उसे अब करने दे
पाँव में बेटे के आने लगे तेरी पा-पोश

बज़्म-ए-उर्दू से हुई देर बहुत आए हुए
अब तलक साँस में ख़ुशबू है मोअ'त्तर हैं गोश

अब तो घर-बार में लगता ही नहीं दिल 'आज़म'
ऐसा लगता है कि हो जाएँगे हम ख़ाना-ब-दोश
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