"सपने और ज़िन्दगी"
मैंने अपने सब सपने बेचे हैं
और एक घर खरीदा है उसमें मैं तनहा रहता हूं,
जिन के लिए बेचे थे सपने वो मेरे साथ है
मगर उन सपनों के बिना मैं कहीं दूर जा चुका हूं,
यूं तो मैं बहुत खुश हूं ज़िन्दगी में
मगर मुझे रात को नींद नहीं आती
क्यूंकि जिन सपनों को रात भर देख कर सुबह पूरा करने को उठता था वो मैं कब के बेच चुका हूं,
अब जब भी मैं खड़ा आईने में खुद को देखता हूं तो जिन आंखों में उम्मीद और ख्वाबों के दरिया हुआ करते थे उनमें अब सिर्फ दुनियादारी और ज़िम्मेदारी का सहरा दिखाई पड़ता है,
पहले जो शख्स दुनिया के साथ घुमा करता था अब किसी एक जगह पर शव की भांति पड़ा हुआ है,
अब ये मालूम हुआ है की इंसान की मृत्यु तब नहीं होती जब सांसें रूक जाती है बल्कि उसकी मृत्यु तब होती है जब वो सपने देखना छोड़ देता है।
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