Ehtisham ul Haq Siddiqui

Ehtisham ul Haq Siddiqui

@ehtisham-ul-haq-siddiqui

Ehtisham ul Haq Siddiqui shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ehtisham ul Haq Siddiqui's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
मुझ में से मिरे जुब्बा-ओ-दस्तार नफ़ी कर
रह जाऊँ अगर बाक़ी तो तशरीह मिरी कर

सब इल्म-ओ-हुनर भूल के बचपन में चला जाऊँ
ऐ साहब-ए-सहर ऐसी कोई जादूगरी कर

दीवारों से बटते हैं ख़िरद-मंदों के ख़ित्ते
तू दश्त-ए-जुनूँ में न ये दीवार खड़ी कर

इक क़ाफ़िला प्यासों का गुज़रना है यहाँ से
ऐ दश्त-ए-बला अपने सरापा को निरी कर

मैं घर में ही पीता हूँ मगर यारों की ख़ातिर
घर से तिरे मयख़ाने में आ जाता हूँ पी कर

इक चाक गरेबाँ में है इक चाक है दिल में
क्या होगा फ़क़त चाक-ए-गरेबान को सी कर

जो ज़ुल्म की रह पर हैं उन्हें राह से भटका
अच्छा भी कोई काम तू ऐ तीरा-शबी कर

गर कुछ भी नहीं पास तो मिट्टी से ही भर ले
ऐ साहब-ए-ख़ैरात तू दामन न तही कर
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Ehtisham ul Haq Siddiqui
शुऊर-ए-नौ-उम्र हूँ न मुझ को मता-ए-रंज-ओ-मलाल देना
कि मुझ को आता नहीं ग़मों को ख़ुशी के साँचों मैं ढाल देना

हुदूद में अपनी रह के शायद बचा सकूँ मैं वजूद अपना
मैं एक क़तरा हूँ मुझ को दरिया के रास्ते पर न डाल देना

अगर ख़ला में पहुँच गया तो पलट के वापस न आ सकूँगा
तुम अपनी हद्द-ए-कशिश से ऊँचा न मुझ को यारो उछाल देना

वो सूरतन आदमी है लेकिन मिज़ाज से मार-ए-आस्तीं है
अगर उसे आस्तीं में रखना तो ज़हर पहले निकाल देना

न जाने खिड़की से झाँकती ये किरन किसे रास्ता दिखा दे
तुम अपने कमरे की खिड़कियों पर दबीज़ पर्दे न डाल देना

सुकूत-ए-शब तोड़ने की ख़ातिर भी कोई हंगामा साथ रखना
न शाम होते ही हर तमन्ना को क़ैद-ख़ाने मैं डाल देना

ये हम ने माना कि तुम में सूरज की सी तपिश है मगर ये सुन लो
कि हम समुंदर हैं और आसाँ नहीं समुंदर उबाल देना
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Ehtisham ul Haq Siddiqui
जो हुआ वो ज़ेहन में था नहीं जो था ज़ेहन में वो हुआ नहीं
जो गुमान में न था मिल गया जो था हाथ में वो मिला नहीं

वो जो हम में तुम में था फ़ासला ये कमाल उस के सबब हुआ
वो सुना गया जो कहा नहीं जो कहा गया वो सुना नहीं

वही किब्र है मिरी ख़ाक में वही जहल है मिरी ज़ात में
जो शरार है वो बुझा नहीं जो चराग़ है वो जला नहीं

वही थी हवा वही थी फ़ज़ा हमें बस परों को था खोलना
तुझे ख़ौफ़ था तू उड़ा नहीं मुझे शौक़ था मैं रुका नहीं

सम-ए-ज़ात हो सम-ए-कुन-फ़काँ सम-ए-ग़ैर हो सम-ए-दोस्ताँ
कोई ज़हर मुझ से बचा नहीं कोई ज़हर तुम ने पिया नहीं

वो तो ख़त्म कह के गुज़र गया मैं ख़याल-ए-हिज्र से मर गया
वो गया तो पीछे मुड़ा नहीं मैं कहीं यहाँ से गया नहीं
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