Ahmad Ameer Pasha

Ahmad Ameer Pasha

@ahmad-ameer-pasha

Ahmad Ameer Pasha shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Ameer Pasha's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Ghazal
हालात मिरे दिल को लगाने नहीं देते
आँखों में तिरे ख़्वाब सजाने नहीं देते

ज़ुल्मत के पुजारी तो बहुत तंग-नज़र हैं
जश्न-ए-शब-ए-तारीक मनाने नहीं देते

आँखों पे तो बिल्कुल ही कोई बस नहीं चलता
हम ख़ुद को तिरी बज़्म में जाने नहीं देते

जन्नत की दुआएँ मुझे देते हैं सभी लोग
इस अहद में जीने के बहाने नहीं देते

नफ़रत की रिवायात के पाबंद हैं लहजे
रूठे हुए लोगों को मनाने नहीं देते

कुछ ख़्वाब मिरी ज़ात से बढ़ कर भी तो हैं जो
फिर दिल को तिरी आस लगाने नहीं देते

सूखे हुए फूल और तिरे लम्स की ख़ुश्बू
सदमा तिरे जाने का भुलाने नहीं देते

गोयाई है पाबंद-ए-सलासिल कि 'अमीर' अब
सहरा में भी आवाज़ लगाने नहीं देते
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Ahmad Ameer Pasha
एक आलम पे बार हैं हम लोग
आदतन सोगवार हैं हम लोग

गर्दिश-ए-पा जुनूँ बढ़ाती है
संग-ए-रह की पुकार हैं हम लोग

पिछली सब रंजिशों को भूल भी जा
अब तिरे ग़म-गुसार हैं हम लोग

जानते हैं हुनर मोहब्बत का
अहल-ए-दिल में शुमार हैं हम लोग

अब हमें लोग हँस के मिलते हैं
अब बहुत साज़गार हैं हम लोग

हम ने मफ़्हूम को ज़बाँ दी है
हर्फ़ का ए'तिबार हैं हम लोग

कोई चेहरा तो रौशनी लाए
वाहिमों का शिकार हैं हम लोग

अब तिरी दोस्ती के क़ाबिल हैं
दिल-गिरफ़्ता-ओ-दिल-फ़िगार हैं हम लोग

दिल चुराने का काम करते हैं
बर-सर-ए-रोज़गार हैं हम लोग

एक पल भी सुकूँ नहीं मिलता
किस क़दर बे-क़रार हैं हम लोग

शहरयारी भी इक नशा है 'अमीर'
तेरे हिस्से का प्यार हैं हम लोग
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Ahmad Ameer Pasha
तुम्हारी तिश्ना-निगाही का एहतिराम करें
फ़ुरात-ए-दश्त-ए-तमन्ना तुम्हारे नाम करें

ये हिज्र उन को मिला है उन्ही की ख़्वाहिश पर
अब अहल-ए-दर्द ये जीने का एहतिमाम करें

तुम्हारी बज़्म में कुछ भी समझ नहीं आता
किसे इशारा करें और किसे सलाम करें

बहुत ज़रूरी है ये धूप टालने के लिए
शजर लगा के तिरे फ़लसफ़े को आम करें

मुख़ालिफ़त भी मज़ा देती है अगर हम लोग
मुख़ालिफ़त के उसूलों का एहतिराम करें

तुम्हारे वस्ल की ख़ुशियों में दिल ये करता है
तुम्हारे नाम पर आज़ाद इक ग़ुलाम करें

यही तो पहला सबक़ है ज़माना-गर्दी का
बग़ल में ले के छुरी मुँह में राम राम करें

हिसार-ए-जाँ से बहुत ऊँची हो गई है 'अमीर'
फ़सील-ए-जब्र गिराने का इंतिज़ाम करें
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