0

नहीं कुछ मसअला हम को घरों का  - Ahmad Ameer Pasha

नहीं कुछ मसअला हम को घरों का
बहुत दुश्वार है बसना दिलों का

उसे कहना मुझे ईजाद कर ले
मुदावा हूँ मैं उस के सब दुखों का

तुम्हारे जाल ले कर उड़ रहा हूँ
करिश्मा है मिरे टूटे परों का

तुम्हारे बा'द भी तन्हा नहीं हूँ
लगा है एक मेला रतजगों का

तुम्हारी आँख का मोती है नादिर
हमारा दिल भी ताजिर है नगों का

कई नस्लें अपाहिज कर गया है
ये झगड़ा था कोई घर के बड़ों का

बराह-ए-रास्त हैं सूरज की ज़द में
ख़ुदा-हाफ़िज़ हो इन ऊँचे घरों का

बड़ा शातिर सियासत-दान है वो
उसे मा'लूम है भाव सरों का

- Ahmad Ameer Pasha

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Ahmad Ameer Pasha

As you were reading Shayari by Ahmad Ameer Pasha

Similar Writers

our suggestion based on Ahmad Ameer Pasha

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari