Faiz Tabassum Tonsvi

Faiz Tabassum Tonsvi

@faiz-tabassum-tonsvi

Faiz Tabassum Tonsvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Faiz Tabassum Tonsvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कूचा कूचा घूम के देखा बात तो इतनी जानी है
जितना जितना शहर बड़ा है उतनी ही वीरानी है

दिल के कारन इस दुनिया में कितने घाव खाए हैं
लेकिन जब भी मौक़ा आया बात उसी की मानी है

ये संसार है गहरा सागर इस के अंदर मोती हैं
साहिल पर तुम मोती ढूँडो ये तो बड़ी नादानी है

यूँ तो इस जीवन का पल पल एक सुहाना सपना है
मनमोहन अलबेला साजन इस में एक जवानी है

इन आँखों ने आज न-जाने कैसा मंज़र देखा है
आज मिरा दिल धड़क रहा है आज बड़ी हैरानी है

ऐवानों में रहने वालो कुटियाओं पर एक नज़र
माल-ओ-मनाल की क़ीमत क्या है ये दुनिया तो फ़ानी है

उलझाओ पे उलझाओ हैं उस हस्ती की बस्ती में
एक तवील बखेड़ा है ये एक अजीब कहानी है

मन मंदिर में 'फ़ैज़' हमारे मेला है कन्याओं का
हर सूरत इक मूरत है और हर तस्वीर सुहानी है
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Faiz Tabassum Tonsvi
मौसम अच्छा है रुत सुहानी है
मेरे लब पर तिरी कहानी है

दुख हो या सुख हो झेलना है उसे
ज़िंदगानी तो ज़िंदगानी है

आज बादल हैं बाद-ओ-बाराँ है
हाथ में जाम-ए-अर्ग़वानी है

जिस ने सरशार उम्र भर रक्खा
ज़ाहिदो वो मेरी जवानी है

लोग कहते हैं ज़िंदगी जिस को
एक क़िस्सा है इक कहानी है

ज़िंदगी एक सैद है जिस की
ताक में मर्ग-ए-ना-गहानी है

शे'र क्या ज़िंदगी का नग़्मा हैं
मैं हूँ और मेरी गुल-फ़िशानी है

दिल की हैं वारदात शे'र मिरे
मर्सिया है कि नौहा-ख़्वानी है

हुस्न से उम्र भर का याराना
हुस्न तो मेरा यार-ए-जानी है

मैं समझता हूँ ज़िंदगी है अमर
लोग कहते हैं ज़ीस्त फ़ानी है

'फ़ैज़' अब तो सँभल नहीं पाते
ना-तवानी सी ना-तवानी है
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Faiz Tabassum Tonsvi
हर तरफ़ जल्वा-ए-फ़रोज़ाँ है
सह्न-ए-हस्ती में इक चराग़ाँ है

हुस्न ही हुस्न है निगाहों में
ज़र्रा ज़र्रा गुहर-बदामाँ है

फूल तो खिल रहे हैं गुलशन में
अपनी क़िस्मत है अपना दामाँ है

ऐ वफ़ा-ना-शनास वक़्त बता
आज फिर किस से अहद-ओ-पैमाँ है

ज़िंदगी से जनम का साथ मिरा
ज़िंदगी मुझ से क्यों गुरेज़ाँ है

आज मौसम हसीं है जान-ए-बहार
आज चलिए कि बाद-ओ-बाराँ है

मौजज़न एक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ है
डूबी डूबी सी नब्ज़-ए-दौराँ है

साँस लेना नसीब है मुझ को
ज़िंदगी पे भी तेरा एहसाँ है

जिस को इंसानियत से नफ़रत है
अहद-ए-हाज़िर ये तेरा इंसाँ है

जिस की तकमील आज तक न हुई
मैं हूँ और मेरे दिल का अरमाँ है

'फ़ैज़' को पूछते रहो यारो
सुनते हैं इक अजीब इंसाँ है
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Faiz Tabassum Tonsvi