गिरी जो ज़ुल्फ़ें तिरी दिन में यार रात हुई
मुझे लगा कि मिरी पूरी काएनात हुई
गले लगा के मुहब्बत से दिल को तुम ले गई
तुम्हीं कहो कि सनम ये भी कोई बात हुई
जो चूम बैठा था तेरे लबों को मैं तो कहो
ये जीत थी या मुहब्बत में मेरी मात हुई
गुलाब सा ये बदन और फिर ये सीने पे तिल
कहूँ ही क्या जो मिरी दिल पे मुनइशात हुई
तुम्हारी मर्ज़ी है साहिर से जो कहो वो हुआ
कहो जो दिन हुआ या फिर कहो तो रात हुई
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