आपके पैरों में ये ज़ंजीर है कैसी पड़ी
हद तो ये है आपको बंदिश न पैरों में लगी
जब कभी वो ताव राणा देते थे मूछों पे तब
पाँव उल्टे भागी थी अकबर की वो सेना बड़ी
चुपके-चुपके रात दिन दिल में सदा तुम ही रहे
खोजता फिरता हूँ तुमको जाने क्यों मैं हर गली
क्या ज़बाँ पर है किसी के क्या किसी के दिल में है
जिसको देखो बो रहा है बीज काँटों के वही
राम जी अब हर युगों में होते नइँ पैदा यहाँ
है क़सम तुमको अहिल्या फिर न पत्थर हो कभी
देख कर दुनिया ख़ुदा की रो पड़ा वो टूट कर
ऐसी दुनिया से भला 'साहिर' तू मर जाके अभी
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