Yasmeen Habeeb

Yasmeen Habeeb

@yasmeen-habeeb

Yasmeen Habeeb shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Yasmeen Habeeb's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख
जो लुटा दिया उसे भूल जा जो बचा है उस को सँभाल रख

कभी सर में सौदा समा कोई कभी रेगज़ार में रक़्स कर
कभी ज़ख़्म बाँध के पाँव में कहीं सुर्ख़ सुर्ख़ धमाल रख

जो चुराई है शब-ए-तार से कई रतजगों को गुज़ार के
वही काजलों की लकीर है अपनी आँख में डाल डाल रख

किसी तारा तारा फ़िराक़ से कोई गुफ़्तुगू कोई बात कर
ये जवाब-गाह-ए-शुऊर है कोई अपने पास सवाल रख

तिरे दर्द सारे गिराँ-बहा तिरी वहशतें हैं अज़ीम-तर
वही बाल खोल के बैन कर वही शाम-ए-सेहन-ए-मलाल रख

जहाँ लग़्ज़िशों से मफ़र नहीं ये वो आगही का मक़ाम है
यहाँ हसत-ओ-बूद को भूल जा नई क़ुर्बतों से विसाल रख

ये जो रौशनी का है दायरा ये रहीन-ए-शमस-ओ-क़मर नहीं
तिरे बस में कब था कि अब रहे तू उरूज रख या ज़वाल रख
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Yasmeen Habeeb
मुझ को उतार हर्फ़ में जान-ए-ग़ज़ल बना मुझे
मेरी ही बात मुझ से कर मेरा कहा सुना मुझे

रख़्श-ए-अबद-ख़िराम की थमती नहीं हैं बिजलियाँ
सुब्ह-ए-अज़ल-निज़ाद से करना है मशवरा मुझे

लौह-ए-जहाँ से पेशतर लिक्खा था क्या नसीब में
कैसी थी मेरी ज़िंदगी कुछ तो चले पता मुझे

कैसे हों ख़्वाब आँख में कैसा ख़याल दिल में हो
ख़ुद ही हर एक बात का करना था फ़ैसला मुझे

छोटे से इक सवाल में दिन ही गुज़र गया मिरा
तू है कि अब नहीं है तू बस ये ज़रा बता मुझे

कैसे गुज़रना है मुझे उस पुल-सिरात-ए-वक़्त से
वैसे तो दे गए सभी जाते हुए दुआ मुझे

मेरा सफ़र मिरा ही था उठते किसी के क्या क़दम
अपने लिए था खोजना अपना ही नक़्श-ए-पा मुझे

लगता है चल रही हूँ मैं रूह-ए-तमाम की तरफ़
जैसी थी इब्तिदा मुझे वैसी है इंतिहा मुझे
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Yasmeen Habeeb
ये कमरा और ये गर्द-ओ-ग़ुबार उस का है
वो जिस ने आना नहीं इंतिज़ार उस का है

रुकी हूँ ज़ख़्म के रक़्बे में अपनी मर्ज़ी से
ये जानती हूँ कि क़ुर्ब-ओ-जवार उस का है

किसी ख़सारे के सौदे में हाथ आया था
सो एक क़ीमती शय में शुमार उस का है

फ़क़त फ़िराक़ तो इतना नशा नहीं रखता
मैं लड़खड़ाई हूँ जिस से ख़ुमार उस का है

ख़रीद सकती थी सो मैं ख़रीद लाई हूँ
वो मेरे पास है चाहे हज़ार उस का है

दरीदा-जाँ हूँ दरीदा-लिबासियाँ भी हैं
मगर ये कम तो नहीं तार तार उस का है

मैं सैंत सैंत के कितना समेट कर रख्खूँ
कि काएनात भरा इंतिशार उस का है

न जाने बोलती रहती हूँ नींद में क्या क्या
जो नाम सुनती हूँ मैं बार बार उस का है

मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ
कुछ उस की शोहरतें कुछ ए'तिबार उस का है
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Yasmeen Habeeb
किसी कशिश के किसी सिलसिले का होना था
हमें भी आख़िरश इक दाएरे का होना था

अभी से अच्छा हुआ रात सो गई वर्ना
कभी तो ख़त्म-ए-सफ़र रतजगे का होना था

बरहना-तन बड़ी गुज़री थी ज़िंदगी अपनी
लिबास हम को ही इक दूसरे का होना था

हम अपना दीदा-ए-बीना पहन के निकले थे
सड़क के बीच किसी हादसे का होना था

हमारे पाँव से लिपटी हुई क़यामत थी
क़दम क़दम पे किसी ज़लज़ले का होना था

हम अपने सामने हर लम्हा मरते रहते थे
हमारे दिल में किसी मक़बरे का होना था

तमाम रात बुलाता रहा है इक तारा
उफ़ुक़ के पार किसी मोजज़े का होना था

किसी के सामने उट्ठी नज़र तो बह निकला
हमारी आँख में क्या आबले का होना था

हिसार-ए-शहर से बाहर निकल ही आए हैं
कभी हमें भी किसी रास्ते का होना था
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Yasmeen Habeeb