सब ने माँगी है दुनिया में रह कर दुनिया
सो किस को कितनी हो सकी मयस्सर दुनिया
जैसे रेत फिसलती है मुट्ठी में आ कर
ऐसे हाथ से मेरे फिसली अक्सर दुनिया
उसको लगता है दुनिया चारा-गर है पर
इल्म नहीं उसको कितनी है सितमगर दुनिया
ऐसी मुनाफ़िक़त से हैरत में हूँ गोया
बस्ती है इक दुनिया के भी अन्दर दुनिया
मैं इस दुनिया से बेहतर हूँ लेकिन फिर भी
उसको लगती है बस और बस बेहतर दुनिया
हैरानी में सोचो मैं हूँ जब से देखा
रहती है जो दुनिया से ही डर कर दुनिया
सब को इक रोज़ कूच करना है दुनिया से
दुनिया वालों मत समझो है मुक़द्दर दुनिया
जिसको है ख़्वाहिश दुनिया की उसको मुबारक
'आरिज़' ने न बिठाई अपने सर पर दुनिया
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