ऐसा उमूमन तो नहीं होता कि जैसा हो गया
मैं अपनी ग़लती मान के भी आज छोटा हो गया
जब सर-ब-सर दिल मेरा यक-दम से तुम्हारा हो गया
तन्हाई का सदमा यकायक ही पुराना हो गया
आईना हैं ग़ज़लें मेरी उसके सँवरने के लिए
मेरा हर इक इक शेर मानो उसका चेहरा हो गया
हालात अपने देख के वो भी परेशाँ रहता है
चाहे वो कितना ही कहे सबसे कि तो क्या हो गया
मैं दिल में ऐसी आतिशें लेके चला था उस घड़ी
सूरज ने भी आँखें मिलाईं जब तो अंधा हो गया
As you were reading Shayari by Achyutam Yadav 'Abtar'
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