ग़म हमें आपका नहीं मिलता
ये हमें मर्तबा नहीं मिलता
कोई भी रास्ता नहीं मिलता
अब यहाँ रहनुमा नहीं मिलता
आप ही इक हमें न मिल पाए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं मिलता
मिल गए शख़्स तो बहुत गोया
आपसा दूसरा नहीं मिलता
आशिक़ों को फ़क़त सनम न मिले
दहर-ए-फ़ानी में क्या नहीं मिलता
अब यहाँ चाँदनी नहीं मिलती
तो यहाँ चाँदना नहीं मिलता
घर में छोटे बड़े बने जब से
घर में कोई बड़ा नहीं मिलता
मिल गई हैं रफ़ाक़तें सब की
क़ुर्ब बस आपका नहीं मिलता
सब मिला है जहान में लेकिन
सिर्फ़ अहल-ए-वफ़ा नहीं मिलता
जो तिरे इस्म से पिलाए मय
वो हमें मय-कदा नहीं मिलता
शख़्स आरिज़ अज़ीज़ मिलते हैं
पर यहाँ आइना नहीं मिलता
As you were reading Shayari by Azhan 'Aajiz'
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