हमारा तो जहाँ में बस बना यूँही तमाशा है
ख़ुदा जाने हमारे इस नसीबा में लिखा क्या है
तुम्हारे हिज्र ने तो मार ही डाला हमें जानाँ
किया है इश्क़ तुमसे बस ख़ता इसके सिवा क्या है
न तुम ही मिल सके हमको न दुनिया ने ही अपनाया
हमें तो बस कि अब तन्हाइयों का ही सहारा है
भुला दें हम उसे कैसे बताओ अब तुम्हीं हमको
हमारी रूह साँसों में जो नस-नस में समाया है
तुम्हारा इंतिज़ार अब उम्र भर करते रहेंगे हम
हमें मालूम है जानाँ कि दस्तूर-ए-वफ़ा क्या है
न जाने क्यों कि तुमसे इश्क़ हमने कर लिया जानाँ
हमें मालूम था इस में ख़सारा ही ख़सारा है
तुम्हारी बे-वफ़ाई का गिला-शिकवा नहीं हमको
कि है इस बात का ग़म तुम न आए जब पुकारा है
यहाँ पर जो हमारा था नहीं वो भी हमारा अब
तुम्हारा कुछ नहीं है पर कि सब फिर भी तुम्हारा है
समझ आ ही गई अब बात ये आरिज़ अज़ीज़ अपने
कि दुनिया क़ैद है इक ज़िन्दगी भी एक धोका है
As you were reading Shayari by Azhan 'Aajiz'
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