हो जाता शामों को सवेरा यार से
इक़रार वो करता नहीं इज़हार से
इक बार कहता है मुझे मत याद कर
इक बार कहता है बुलाना प्यार से
हमसे नहीं होगा बिछड़ कर रूठना
फूलों बिना रिश्ता भला क्या ख़ार से
साँसें नहीं चलती कलम की शौक़ से
भरना पड़ा मुझको इसे आज़ार से
तुम इनसे क्या नाता निभाते हो भला
तुम मिट नहीं पाए कभी अश'आर से
इस हाथ की उसको ज़रूरत अब नहीं
आँसू मिटा कोई गया रुख़्सार से
सब कुछ मिला 'चेतन' वफ़ा को छोड़ कर
अब लौट आ ख़ाली भरे-बाज़ार से
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