साथ अपनों ने दिया है न ज़माने वाले
आज सब लोग हैं एहसान जताने वाले
अब यक़ीं किस पे करूँ किसको कहूँ मैं अपना
रिश्ते तोड़े हैं सभी रिश्ते निभाने वाले
अपने अरमाँ की लहद में हूँ मैं मदफ़ून मगर
अब भी ज़िंदा हैं मेरी ख़ाक उड़ाने वाले
वक़्त ने कैसे पलट दी यहाँ बाज़ी सारी
अब हैं ख़ामोश यहाँ सबको हँसाने वाले
किस तरह धुंद में पोशीदा हुए हैं लोगों
मेरी आँखों को नए ख़्वाब दिखानेवाले
तुमको रुसवाई-ए-आलम का ज़रा ख़ौफ़ नहीं
लिख के दिल पर यूँ मेरा नाम मिटाने वाले
अब कहाँ अपनी ख़ताओं पे पशेमानी है
हम फ़क़त रह गए हैं अश्क बहाने वाले
सिर्फ़ आँखों के इशारे नहीं काफ़ी होंगे
पास भी आओ मेरे मुझको मनाने वाले
तिश्नगी उसके तबस्सुम ने बढ़ाई अक्सर
अब मिरे अश्क ही हैं प्यास बुझाने वाले
As you were reading Shayari by Kumar Aryan
our suggestion based on Kumar Aryan
As you were reading undefined Shayari