होश सबका उड़ा के रक्खा है
रंग ऐसा जमा के रक्खा है
पर्वतों को झुका के रक्खा है
कैसा रुतबा बना के रक्खा है
आपको किस तरह बताएँ हम
दर्द कितना छुपा के रक्खा है
इक तेरे हुस्न ने मेरे हमदम
सबको पागल बना के रक्खा है
छोड़कर जा चुकीं सभी ख़ुशियाँ
दर्द दिल में बसा के रक्खा है
इतनी सरशारी भी नहीं अच्छी
किस ने सर पर चढ़ा के रक्खा है
वक़्त बतलाएगा तुझे इक दिन
किसको तूने भुला के रक्खा है
अपने वालिद के सामने हमने
सर हमेशा झुका के रक्खा है
इतनी छोटी सी उम्र में सर पे
बोझ घर का उठा के रक्खा है
बेज़मीरों हमें नहीं छेड़ो
ज़र्फ़ हमने जगा के रक्खा है
कितना नादान है कुमार अपने
क़द को ख़ुद ही घटा के रक्खा है
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