जिधर का है मेरा सफ़र धीरे-धीरे
चला जा रहा हूँ उधर धीरे-धीरे
ये सबको पता है उसे चाहते हैं
वो समझेगा इसको मगर धीरे-धीरे
है जिसपर यक़ीं मुझको ख़ुद से भी ज़्यादा
हुआ कैसे वो बेख़बर धीरे-धीरे
कटीली है राहें बहुत मेरे हमदम
कटेगा ये कैसे सफ़र धीरे-धीरे
कहाँ होती है ज़िंदगानी में भी अब
जवानी ये कुछ कार गर धीरे-धीरे
कभी छाँव देता था सबको जहाँ में
है काटा गया वो शजर धीरे-धीरे
ज़माने के तूफ़ान ने दोस्तों अब
बना ही दिया है निडर धीरे-धीरे
मुझे रास आने लगी आर्यन अब
मुहब्बत की शामों सहर धीरे-धीरे
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