कभी न मिल सके हम-तुम शनास हो कर भी
हमेशा दूर रहे पास-पास हो कर भी
नसीब जब से ये झुँझलाहटें हुईं हैं हमें
ज़बान तल्ख़ है दिल में मिठास हो कर भी
किसी के पास है बस इक क़बा मगर ख़ुश है
कोई दुखी है हज़ारों लिबास हो कर भी
भले ही जान ही ले ले न क्यों उदासी ये
मगर दिखूँगा नहीं मैं उदास हो कर भी
वो उस का हो गया है ख़ास आम हो कर और
यहाँ मैं रह गया बस आम ख़ास हो कर भी
थी ऐसी प्यास कि हम से रुका गया ही नहीं
दबा ली होंठ में बोतल गिलास हो कर भी
जो इक उमीद थी दिल में कि वो भी सोती रही
रहा निरास ही मैं पास, आस हो कर भी
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