उस लडकी को कुछ समझाना 

  - Naaz ishq

उस लडकी को कुछ समझाना 
दीवारों पे सर टकराना

वस्ल की सुबह न हिज्र की रातें
लगा हुआ है आना जाना

याद आते हैं माज़ी के दिन
वो इक दूजे से बतलाना 

तुमसे इश्क़ नहीं है मुझको
दिल पे पत्थर रख के कहा ना

झूठ कहा था झूठ सुना था
और कहो ना और सुना ना 

दरिया दरिया प्यास बुझाओ
लेकिन लौट के फिर मत आना

प्यार किया है और किसी से 
और किसी से प्यार निभाना

तर्क-ए-तअल्लुक़ करने को वो
ढूॅंढ रही थी एक बहाना

इक दिन ऑंसू अता किए थे 
रोज़ हुमारा शुक्र मनाना

क़समें खाना छोड़ चुकी हूॅं
क़समें खा खा के बतलाना

याद न करना मुझको चाहे
लेकिन मुझको भूल न जाना

  - Naaz ishq

More by Naaz ishq

As you were reading Shayari by Naaz ishq

Similar Writers

our suggestion based on Naaz ishq

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari