नसीब अपना भी ऐसी ख़्वारी का हक़दार हो जाए
हसीं बाँहों में सिमटे और दिल मिस्मार हो जाए
मैं माँझी हूँ समुंदर का बहुत सम्मान करता हूँ
न जाने कब कहाँ कोई भँवर तय्यार हो जाए
उसे लम्हा-ब-लम्हा बस ख़याल आए फ़क़त मेरा
ख़ुदा नेमत अता फ़रमा कि उसको प्यार हो जाए
ज़राए कश्फ़ की आमद के मेरे पास रहने दो
अगर तुम दूर हो जाओ क़लम ख़ुद्दार हो जाए
मोहब्बत करने का सबको मैं तब-भी मशवरा दूँगा
मोहब्बत करने से बाग़ी अगर किरदार हो जाए
उसे ये क़ुर्बतें कम हैं मगर मेरी ख़ुशी का तो
ठिकाना ही नहीं रहता अगर दीदार हो जाए
बदन तो ठीक है हम रूह भी ऐसे सँवारेंगे
कि अफ़साना हमारा प्यार का मेयार हो जाए
हमारी जंग अबकी बार ऐसे दुश्मनों से है
ज़रा ग़फ़लत करें तो पीठ पर ही वार हो जाए
कुछ ऐसा वस्ल दो जिसके सहारे कट सके फ़ुर्क़त
वगर्ना कौन जाने कब 'मिलन' मय-ख़्वार हो जाए
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