जिसको पूजा वही छोड़ दिल-बर गया
प्यार इक हादसा, जिसमे दिल मर गया
चाहता हाथ को, तो पकड़ लेता मैं
बातों में रह गए और ये अवसर गया
होती धरती है बेचैन जिसके लिए
आज देखो बहुत रो के अम्बर गया
विश्व भर जीता हो जिसने पर देख तो
हाथ खाली यहाँ से सिकन्दर गया
मैंनें कुछ शेर , ऐसे कहे रात को
जिसको कहने मे मेरा ये दिन भर गया
बाप की पगड़ी ऐसे उतारी गई
जैसे कोई सुहागिन का ज़ेवर गया
As you were reading Shayari by Sachin Sharmaa
our suggestion based on Sachin Sharmaa
As you were reading undefined Shayari