आरज़ू ये है मिरी जान की जाते जाते - Saif Dehlvi

आरज़ू ये है मिरी जान की जाते जाते
इक महल हम भी तेरे नाम बनाते जाते

हम को तस्वीर बनानी नहीं आती वरना
उम्र भर हम तिरी तस्वीर बनाते जाते

किस लिए छोड़ गए तोड़ गए क्यूँ रिश्ता
जाते जाते हमें इतना तो बताते जाते

ज़िन्दगी भर के लिए छोड़ के जाना था अगर
कम से कम नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो मिटाते जाते

ठोकरें खा के सॅंभलना तुम्हें कैसे आता
हम अगर राह के पत्थर को हटाते जाते

वो भी मुड़ मुड़ के कहाँ तक हमें देखे जाता
हम भी कब तक उसे आवाज़ लगाते जाते

उन से कहना कि बहुत याद किया है उन को
उन के दीवाने ने इस दहर से जाते जाते

मुफ़लिसी ले गई सुख चैन हमारा वरना
ज़िंदगी हम भी तेरे नाज़ उठाते जाते

वो चराग़ों का मुक़द्दर था कि जलते बुझते
आपका काम जलाना था जलाते जाते

- Saif Dehlvi
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