तकल्लुफ़ में बिता दो रात ये ग़ैरों की बातें हैं - Surendra Bhatia "Salil"

तकल्लुफ़ में बिता दो रात ये ग़ैरों की बातें हैं
तुम्हारे और मेरे बीच दो पहरों की बातें हैं

समझ आती नहीं और सुन भी तो पाता नहीं कोई
कहे जाते हैं बस अपनी ही ये बहरों की बातें हैं

कोई छूता रहे हरदम तुम्हारा हो नहीं लेकिन
समन्दर साहिलों को इल्म क्या लहरों की बातें हैं

बड़ा मायूस है बूढ़ा कहा है जब से बेटे ने
हो छोटे शहर से तुम ये बड़े शहरों की बातें हैं

बिसात-ए-अक़्ल-ओ-दानाई तुम्हारी है नहीं इतनी
ज़मीनी जान लोगे और ये दहरों की बातें हैं

- Surendra Bhatia "Salil"
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