"नाकाम कोशिश" - Surendra Bhatia "Salil"

"नाकाम कोशिश"

तू गुज़रे सामने से जब भी, मैं महसूस करता हूँ
तेरी रग़बत छुपाने की हर इक नाकाम कोशिश को

सदाएं दिल से आती हैं, लबों को बंद रख चाहे
तेरी नज़रें चुराने की हर इक नाकाम कोशिश को

वो दिन भी था, ये दिन भी है, न छोड़ा था, न थामा है
अभी तक तूने, "मुझ" को "हम", न इनकारा न माना है
अब इस इक़रार और इनकार की बेतुक लड़ाई से
तेरी ख़ुद को बचाने की हर इक नाकाम कोशिश को

वो गलियाँ, जिन पे चलते सोचती थी देखता हूँ मैं
वो नुक्कड़, जिस पे नज़रें चार अक्सर हो ही जाती थी
उसी शीशम के पत्तों से गुजरती इन हवाओं से
तेरी दामन चुराने की हर इक नाकाम कोशिश को

मगर मैं अब भी सुनता हूँ तेरे दिल की सदाओं को
तेरी इक़रार और इनकार में उलझी वफाओं को

तेरे दामन को बरबस छेड़ती सी इन हवाओं को
गो तुझको भूलने की इक नयी नाकाम कोशिश को

- Surendra Bhatia "Salil"
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