मैं पोशीदा नहीं रहता तेरी नज़रों में ख़ामी है

  - Surendra Bhatia "Salil"

मैं पोशीदा नहीं रहता तेरी नज़रों में ख़ामी है
तू भीतर ढूँढ ले मुझको मेरी हामी ही हामी है

सुनाता फिर रहा है दास्ताँ मेरी ज़माने को
मैं हूँ गुमनाम लेकिन तू बड़ा नामी गिरामी है

बनाया मैंने तुझको तूने मुझको क्या बना डाला
नयन हिरनी से पतली नाक सूरत इन्तिक़ामी है

हुनर कितना अनोखा है मेरे सौदाई तेरा भी
मैं ख़ाली हाथ हूँ और तू बहुत मोटी असामी है

हमारे बीच में अब फ़ासला है सिर्फ़ फ़ितरत का
मैं तुझको अपना कहता हूँ तेरे दिल में ग़ुलामी है

तू मेरे पास आकर देख तो क्या कुछ नहीं हूँ मैं
मेरे जंगल मेरे पर्वत कहाँ फिरता अवामी है

  - Surendra Bhatia "Salil"

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