कब तक अपनी आँखों को तू ख़्वाबों से बहलाएगा - Sanjay Bhat

कब तक अपनी आँखों को तू ख़्वाबों से बहलाएगा
मायूसी का मंज़र इक दिन आँखों को दिख जाएगा

कोई इस रस्ते पर चल के पा लेगा अपनी मंज़िल
लेकिन कोई इस रस्ते के काँटों से घबराएगा

यूँ तो रखते हैं इस दिल को अपने क़ाबू में हर दम
पर दे ही देंगे दिल उस को जो सीने से लगाएगा

अहल-ए-दुनिया को तुझ से यूँ तो लाखों उम्मीदें हैं
माना सब है बस में तेरे तू क्या क्या सुलझाएगा

कैसे कह दूँ ये दिलकश फ़न बस तुझ को ही हासिल है
और भी शाइर हैं जिन को तू सुनते ही मुस्काएगा

- Sanjay Bhat
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