कारनामा सर-ए-मक़तल ये अनोखा होगा
एक टूटे हुए नेज़े से अब हमला होगा
जिस घड़ी सर मेरे ज़ानू पे तुम्हारा होगा
ख़ूबसूरत वो मेरी जान नज़ारा होगा
देखना एक दिन हम दोनों बिछड़ जाएगे
ख़त्म इस तरह सनम इश्क़ का किस्सा होगा
फूल मुरझाए हुए खिल गए होंगे सारे
मेरे महबूब ने जब होंठो से चूमा होगा
जाने कब मेरी दुआओं में असर आएगा
जाने कब मुझको मयस्सर तेरा बोसा होगा
आप ने कह दिया होगा मेरे बारे में ग़लत
उसने यूँ लहजे को तलवार बनाया होगा
सब शहर वालों ने तब ईद मनाई होगी
मेरा महबूब सर-ए-बाम जब आया होगा
नाम हाथों पे मेरा जब लिखा होगा उसने
उसकी सखियों ने उसे ख़ूब चिढाया होगा
मै सलामत रहूं उसने ये दुआ की होगी
हाथ जब जब भी दुआओं को उठाया होगा
काटते वक़्त शजर ये नहीं सोचा तुमने
बे-ज़बाँ कितने परिंदों का ख़सारा होगा
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