हक़ की आवाज़ उठाने के लिए क़ैस बनो
मक़सद-ए-इश्क़ बचाने के लिए क़ैस बनो
लब पे ये हज़रत-ए-लैला के सजा है नारा
इश्क़ पे जान लुटाने के लिए क़ैस बनो
मक़तल-ए-इश्क़ में सब आपका लौहा माने
ज़ुल्म को ख़ून रुलाने के लिए क़ैस बनो
इश्क़ भी एक इबादत है कोई जुर्म नहीं
बात ये सबको बताने के लिए क़ैस बनो
शहर-ए-शम्ला से ये आवाज़-ए-जरस आई है
इश्क़ की शम्मा जलाने के लिए क़ैस बनो
मौत के बाद जो ख़्वाहिश है तुम्हें जीने की
तो सुनो यार ज़माने के लिए कैस बनो
आग जो इश्क़ की बस्ती में लगी है मुर्शिद
आप वो आग बुझाने के लिए क़ैस बनो
ऐश-ओ-इशरत की ये सब चीज़ें नहीं अपने लिए
दोस्तों सहरा बसाने के लिए क़ैस बनो
मिंबर-ए-इश्क़ से बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर सारे जवाँ
ख़ुत्बा-ए-इश्क़ सुनाने के लिए क़ैस बनो
हज़रत-ए-क़ैस की तुर्बत से ये आती सदा
तुम शजर अब के ज़माने के लिए क़ैस बनो
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