तेरे मेरे क़रीब आने के दिन हैं
दिलों में आग सुलगाने के दिन हैं
लगाओ दिल कि इतना सोचना क्या
अभी तो भूल कर जाने के दिन हैं
कि मुझ से दूर तुम क्यूँ जा रहे हो
यूँ जाने के न तड़पाने के दिन हैं
अजेंडा आज मज़हब का चला कर
सभी में बैर करवाने के दिन हैं
नई सी गंध फैला कर फ़ज़ा में
पुरानी गंध हटवाने के दिन हैं
अभी शादी के बंधन में न बांँधो
हमारे नाचने गाने के दिन हैं
ये दिल भरपूर शीशा हो गया है
किसी पत्थर से टकराने के दिन हैं
कभी तू दर्द ही मुझ को अता कर
समझ के यार नज़राने के दिन हैं
कि अपना हौसला मजबूत कर लो
अभी तो ठोकरें खाने के दिन हैं
अभी अहद-ए-जुनूँ का दबदबा है
सभी हद से गुज़र जाने के दिन हैं
कभी फुर्क़त में "शेखर" रोइएगा
अभी तो चोट ही खाने के दिन हैं
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