सबने कितनी लज़्ज़त से देखा मुझको
रोज़-ए-मर्ग तबीअत से देखा मुझको
आने वालों को सानेहा मज़ाक़ लगा
जाने वालों ने फ़ुर्सत से देखा मुझको
इतना ज़्यादा गहरा था ये नशेब-ए-दिल
उतरने वालों ने छत से देखा मुझको
अपनी प्यास बचा लाया हूँ इतनी दूर
दरिया दरिया ने हैरत से देखा मुझको
उस घर में चारों ओर बेटियाँ थी बस
सबने शिद्दत-ओ-हसरत से देखा मुझको
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