मुझको बेघर ही समझो होना था
तेरे दिल में मिरा बसेरा था
मुझको तोहफ़े में जो घड़ी दी है
वक़्त थोड़ा सा तुझको देना था
मुझको महलों से क्या ही लेना है
साथ में झोपड़ी में रहना था
मैं वो शादी का पैरहन जिसको
उसने बस एक बार पहना था
मुझको दुनिया समझ नहीं आती
मुझको उनका ग़ुलाम होना था
उसकी फ़ितरत में ही कहाँ थी वफ़ा
उसको पा लेता तब भी खोना था
मेरे हक़ में रहा बिछड़ना भी
ज़िंदगी भर का वर्ना रोना था
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