हर इक ख़ुशी के मौक़े पर इक मज़हबी तकरार है - Yuvraj Singh Faujdar

हर इक ख़ुशी के मौक़े पर इक मज़हबी तकरार है
कोई तो लाए अम्न का पैग़ाम ये दरकार है

दहशत के बाज़ारों में मंदी कैसे आ सकती है अब
दहशत जो फैलाते हैं अब उनकी ही तो सरकार है

जनता की जाएज़ माँगों पर बातें करें कैसे भला
चारों तरफ़ बस बिक चुके अख़बारों की भरमार है

अब ये अदाकारी तो लाज़िम होगी ही इन ख़बरों में
ख़ुद उनका हाकिम भी तो अच्छा-ख़ासा इक फ़नकार है

जिसने सिखाई थीं वो सारी चालें उसको खेल की
वो शख़्स ख़ुद इस खेल में अब हो गया लाचार है

ये दोस्ती महँगी न पड़ जाए अमीर-ए-शहर को
कब तक चलेगी एक दिन गिरनी ये भी सरकार है

- Yuvraj Singh Faujdar
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