मेरे ख़्वाबों पे जो पहरा लग रहा है
पहरा ये मुझको अब अच्छा लग रहा है
मेरे सीने पे सिर अपना रख के बोली
ये नज़ारा कितना प्यारा लग रहा है
उसकी आँखें आज देखीं तो लगा ये
जैसे कोई दरिया प्यासा लग रहा है
हाथ को मेरे गले में डाल करके
कहती है ये मुझको गहना लग रहा है
वो मुसलसल पूछती रहती है मुझसे
प्यार सच में हो गया या लग रहा है
देखकर ख़ुद को मेरी आँखों में बोली
चेहरा ये तो देखा देखा लग रहा है
उसको यूँ नज़दीक से क्या देखा हमने
हमको अब हर कोई धुँधला लग रहा है
आज हम दोनों ज़ियादा ही ख़ुश हैं है ना
अब बिछड़ जाने का डर सा लग रहा है
उसको मैंने पा लिया है फिर भी मुझको
उसके खो जाने का धोखा लग रहा है
आ यहाँ पर बैठ थोड़ी देर फिर सोच
क्यों ये लड़का इतना तन्हा लग रहा है
इक समंदर है मयस्सर मुझको लेकिन
ये समंदर मुझको सहरा लग रहा है
आ गया हूँ मेले में लेकिन ये मेला
मुझको मेरे दिल के जैसा लग रहा है
बन रही है ये इमारत जो ग़मों की
कुछ पता है इसमें क्या क्या लग रहा है
ये मोहब्बत की तिजारत जो है इसमें
हर किसी को बस मुनाफ़ा लग रहा है
वक़्त थोड़ा ही बचा है पास मेरे
वक़्त अब भी मुझको ज़्यादा लग रहा है
मौत जितवा देगी सब कुछ इक दिन आख़िर
ज़िंदगी में जो भी हारा लग रहा है
मैं वहाँ आँसू गिरा आया था मेरे
अब जहाँ लोगों को दरिया लग रहा है
हमने अपनी रूह खींची है बदन से
आपको बस ये बिछड़ना लग रहा है
ग़ज़लें सुनकर मुझसे ये कहते हैं उस्ताद
मौज़ू ये काफ़ी नया सा लग रहा है
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