इस कफ़स से एक दूजे की रिहाई करते हैं
मेरे दोस्त चल कि हम भी बेवफ़ाई करते हैं
जब तलक थे साथ हम जुदा थे अपने रास्ते,
अब बिछड़ के मेरे यार हम-नवाई करते हैं.
अब जो बिछड़े हैं तो क्यूँ न कुछ नया सा करते हैं
पीठ पीछे एक दूजे की बुराई करते हैं
ये सुना था लोग हिज्र में हैं करते शायरी,
क्यूँ न हम भी अब कोई ग़ज़ल-सराई करते हैं
इस मरीज़ दिल की अब तबीब क्या दवा करे,
ज़ख्म-ए-दिल की ख़ुद ही यार हम दवाई करते हैं
इश्क़ के सफ़र में थाम लो मेरा ये हाथ तुम,
चलते चलते हम कि ख़ुल्द तक रसाई करते हैं
कुछ न कुछ तो होना चाहिए बिछड़ने का जवाज़,
चल कि शिकवा करते हैं कोई लड़ाई करते हैं
ये ज़माना तो न जान पाया अपने मसअले,
प्रिंस चल दर-ए-ख़ुदा पे अब दुहाई करते हैं
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