0

मिट्टी से मशवरा न कर पानी का भी कहा न मान  - Abhishek shukla

मिट्टी से मशवरा न कर पानी का भी कहा न मान
ऐ आतिश-ए-दरूँ मिरी पाबंदी-ए-हवा न मान

हर इक लुग़त से मावरा मैं हूँ अजब मुहावरा
मिरी ज़बाँ में पढ़ मुझे दुनिया का तर्जुमा न मान

ज़िंदा समाअतों का सोग सुनते कहाँ हैं अब ये लोग
तू भी सदाएँ देता रह मुझ को भी बे-सदा न मान

या तो वो आब हो बहुत या फिर सराब हो बहुत
मिट्टी हो जिस के जिस्म में उस को मिरा ख़ुदा न मान

टूटे हैं मुझ पे क़हर भी मैं ने पिया है ज़हर भी
मेरी ज़बान-ए-तल्ख़ का इतना भी अब बुरा न मान

बस एक दीद भर का है फिर तो ये वक़्फ़ा-ए-हयात
उन के क़रीब जा मगर आँखों की इल्तिजा न मान

- Abhishek shukla

Paani Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Abhishek shukla

As you were reading Shayari by Abhishek shukla

Similar Writers

our suggestion based on Abhishek shukla

Similar Moods

As you were reading Paani Shayari