0

सफर के बाद भी ज़ौक़-ए-सफर न रह जाए  - Abhishek shukla

सफर के बाद भी ज़ौक़-ए-सफर न रह जाए
ख्याल-ओ-ख्वाब में अब के भी घर न रह जाए

मैं सोचता हूँ बहुत ज़िन्दगी के बारे में
ये ज़िन्दगी भी मुझे सोच कर न रह जाए

बस एक खौफ में होती है हर सहर मेरी
निशान-ए-ख्वाब कहीं आँख पर न रह जाए

ये बे-हिसि तो मेरी ज़िद थी मेरे अज्ज़ा से
की मुझ में अपने तआक़ुब का दर न रह जाए

हवा-ए-शाम तेरा रक़्स न-गुज़िर सही
ये मेरी खाक तेरे जिस्म पर न रह जाए

उसी की शक्ल लिया चाहती है खाक मेरी
सो शहर-ए-जान में कोई कूज़ा -गर न रह जाए

गुज़र गया हो अगर क़ाफ़िला तो देख आओ
पास-ए-ग़ुबार किसी की नज़र न रह जाए

मैं एक और खड़ा हूँ हिसार-इ-दुनिया के
वो जिस की ज़िद में खड़ा हूँ उधर न रह जाए

- Abhishek shukla

Self respect Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Abhishek shukla

As you were reading Shayari by Abhishek shukla

Similar Writers

our suggestion based on Abhishek shukla

Similar Moods

As you were reading Self respect Shayari